दिल्ली अग्निकांड: मरने से पहले दोस्त को आखिरी कॉल- अब तुम ही सहारा, बच्चों का ख्याल रखना

0
2288
मरने से पहले दोस्त को आखिरी कॉल- अब तुम ही सहारा, बच्चों का ख्याल रखना
dying-man-mussharaf-made-last-call-to-freind
mussharaf – dying man made last call to his freind

दिल्ली के अनाज मंडी स्थित एक फैक्ट्री में रविवार सुबह आग लगने की घटना ने लोगों को दहला कर रख दिया. मरने वालों की संख्या बढ़कर 43 पर पहुंच चुकी है. घटनास्थल का मंजर ऐसा था, जो किसी को भी रोने पर मजबूर कर दे. इस बीच एक ऐसी दर्दनाक कहानी का पता चला है, जिसे जानकर आप भी खुद को भावुक होने से रोक नहीं पाएंगे.

सुबह 4 बजे के आसपास जब दिल्लीवासी रजाई में दुबक कर सो रहे थे तो मुशर्रफ अली बिहार फोन मिला रहा था. वो अपने पड़ोस में रहने वाले दोस्त के सामने गिड़गिड़ा रहा था. वो मिन्नतें कर रहा था. वो कह रहा था कि मैं मर रहा हूं. मेरे मरने के बाद परिवार को देखने वाला कोई नहीं है. अब तुम ही सहारा हो. उनका ख़्याल रखना.

मुशर्रफ अली सुबह 4 बजे के करीब पड़ोस के दोस्त को फोन करता है.. वो कहता है… मोनू, भैया खत्म होने वाला हूं आज मैं…आग लगने वाली है यहां. तुम आ जाना करोल बाग. गुलजार से नंबर ले लेना…

पड़ोसी पूछता है- कहां, दिल्ली?

मुशर्रफ अली कहता है- हां..  

पड़ोसी कहता है तुम किसी तरह निकलो वहां से…

मुशर्रफ कहता है- नहीं है कोई रास्ता.. भागने का रास्ता नहीं है. ख़त्म हूं मैं भइया आज तो. मेरे घर का ध्यान रखना. अब तू ही है उनका ख्याल रखने को.

इसी बीच उसको घुटन महसूस होती है. वो कहता है- अब तो सांस भी नहीं लिया जा रहा है.

पड़ोसी पूछता है आग कैसे लगी.. वह कहता है- पता नहीं.. पड़ोसी सलाह देता है कि पुलिस, फायर ब्रिगेड किसी को फोन करो और निकलने की कोशिश करो…

मुशर्रफ अल्लाह को याद करता है और कहता है भाई अब तो सांस भी नहीं ली जा रही है. जैसे-जैसे वो मौत के क़रीब जा रहा था उसे अपने परिवार की चिंता सता रही थी. जब मुशर्रफ, मौत को अपने सामने देखने लगा तो रोने लगा. कहता है- घर का ध्यान रखना भाई.. या अल्लाह..

मरते-मरते मुशर्रफ को इस बात की चिंता थी कि अगर परिवार को सीधे उसके मरने की खबर लगी तो कहीं और बुरा न हो जाए. इसलिए वो पड़ोसी से कहता है- घर पर सीधे मत बताना. पहले बड़े लोगों में बात करना.. कल लेने आ जाना, जैसे समझ में आए..

मुशर्रफ की तीन बेटी और एक बेटा है. वो पड़ोसी से कहता है कि देखो तुम पर ही भरोसा है. जब तक बच्चे बड़े न हो जाएं, उनका ख्याल रखना…

फिर उसकी आवाज आनी बंद हो जाती है.. पड़ोसी फोन पर हैलो-हैलो कहता रहता है. तभी फिर मुशर्रफ की आवाज आती है, वो कहता है- रोना मत…

फिर मुशर्रफ बताता है कि फ्लोर तक आग पहुंच गई है… वो कहता है कि मर भी जाऊंगा तो रहूंगा वहीं पर… यहां आने की तैयारी कर लो.. और सीधे घर पर मत बताना किसी को…  

इसके बाद वो फोन कट कर देता है. लेकिन पड़ोसी का दिल नहीं मानता वो फिर से मुशर्रफ को फोन मिलाता है..

मुशर्रफ फोन उठाता है… वह दो पल सांस के लिए संघर्ष कर रहा था… कहता है कि इमामदिन के 5,000 रुपये बाकी है.. उसे वापस कर देना.. किसी का पैसा नहीं रखना है..

काफी देर तक फोन पर आवाज नहीं आती है. फिर पड़ोसी पूछता है- गाड़ी आई क्या?

मुशर्रफ की जुबान लड़खड़ाने लगी थी. उसका दम टूट रहा था. मुशर्रफ को कहीं से हवा नहीं मिल पा रही थी. उसके शरीर में बचा ऑक्सीजन उसको मरने नहीं दे रहा था लेकिन अगले ही कुछ पलों में उसकी टूटती सांसों की आवाज आनी भी बंद हो गई..

मुशर्रफ, जिंदगी की जंग हार चुका था.. पड़ोसी हैलो-हैलो कहता रहा.. लेकिन दूसरी तरफ से कोई हलचल नहीं थी.