बेसहारा मरीजों के लिए सहारा रहे विख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डा. केके अग्रवाल अब नहीं रहे। चिकित्सा के पेशे से जुड़ कर उन्होंने करोड़ों रुपये अर्जित तो नहीं किए लेकिन बेसहारा, आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों, सैकड़ों बच्चों के दिल की बीमारियों का निश्शुल्क इलाज कराकर एक बड़ी लकीर जरूर खींच दी है।
डा. अग्रवाल उस समय भी आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के इलाज के लिए तत्पर रहे, जब वह बड़े निजी अस्पताल से जुड़े थे।उनका मानना था कि इलाज से मरीज की जान बचाई जा सकती है, लेकिन जागरूकता से करोड़ों लोगों को स्वस्थ रखा जा सकता है। अपनी इस सोच को वह आखिर तक आगे बढ़ाते रहे। वर्धा स्थित महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान से एमबीबीएस व एमडी की पढ़ाई करने वाले डा. अग्रवाल की अध्यात्म में भी गहरी आस्था थी।वह प्रतिदिन सुबह साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे तक श्रीमद्भगवद् गीता का पाठ व गायत्री मंत्र का उच्चारण करते थे।
एलोवेदा नामक किताब भी लिखी
उन्होंने एलोवेदा नामक एक किताब भी लिखी है। इसमें उन्होंने माडर्न मेडिसिन व वेद में वर्णित प्राचीन वैदिक ज्ञान के संयोजन पर जोर दिया गया है।
डीएमए (दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन) का अध्यक्ष रहने के दौरान उन्होंने एसोसिएशन के मुख्यालय में अल्कोहल व मांसाहार का इस्तेमाल बंद करा दिया था। वह कहा करते थे कि ज्यादातर मरीजों को बगैर सर्जरी के ठीक किया जा सकता है। आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों की वह निश्शुल्क जांच कराते थे। आइएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने कारपोरेट अस्पतालों में जांच और इलाज के महंगे खर्च को कम करने लिए सरकार को कुछ अहम सुझाव भी दिए थे, जिसका बाद में एसोसिएशन ने ही विरोध कर दिया।
शो मस्ट गो आन’ का दे गए मंत्र डा. अग्रवाल
पेशे के प्रति कितने ईमानदार थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संक्रमित होने के बाद जब वह सीटी स्कैन के लिए जा रहे थे। उसी समय फोन आने पर रास्ते में ही उन्होंने मरीज को चिकित्सीय परामर्श दिया। वह दुनिया से अलविदा होने से पहले ‘शो मस्ट गो आन’ का मंत्र दे गए हैं।