करतारपुर में सुबह साढ़े सात बजे अज्ञात बुजुर्ग को वाहन ने टक्कर मार दी, जिसे एंबुलेंस से सिविल अस्पताल लाया गया। यहां इमरजेंसी के इंचार्ज डॉ. सुरिंदर ने मरीज को देखने के बाद प्राथमिक उपचार शुरू कर दिया। सुबह 8 बजे डॉ. मयंक ड्यूटी पर आए और उन्होंने 10 बजे मरीज को वार्ड में शिफ्ट कर दिया। डॉक्टर और स्टाफ नर्सों ने बताया कि कोई मूवमेंट नहीं थी लेकिन मरीज जिंदा था। सुबह साढ़े 10 बजे सर्जन डॉ. अभिषेक सच्चर को मेल सर्जिकल वार्ड के आरएमओ और स्टाफ नर्स ने फोन कर बताया कि मरीज कोई हरकत नहीं कर रहा है।
डॉ. सच्चर ने चेक किया और ग्लूकोज चढ़ाने को कहा। 11 बजे फिर स्टाफ नर्स ने डॉ. अमन को फोन किया तो उन्होंने कहा कि मरीज को हाईड्रोकोर्ट इंजेक्शन दे दो। स्टाफ नर्स ने इंजेक्शन दे दिया और मरीजी की ईसीजी करवाने के लिए स्टाफ भी पहुंच गया। बुजुर्ग कोई हरकत नहीं कर रहा था तो डॉ. अमन को बुलाया। उन्होंने आकर बुजुर्ग को मृत घोषित कर दिया। बुजुर्ग का शव पूरे दो घंटे तक मेल सर्जिकल वार्ड में मरीजों के बीच पड़ा रहा। मृतक को भर्ती करते समय तो बेड पर चादर नहीं बिछाई गई, लेकिन शव को कफन दे दिया गया।
नवजात को गोद में लिए बाजवा कालोनी जालंधर की रेखा रानी और अश्वनी ने बताया कि वार्ड में गंदगी खुद साफ करनी पड़ती है क्योंकि बच्चा हमारा है तो हमें ही ख्याल रखना पड़ेगा। जब वह भर्ती होने आई थी तो बेड शीट फटी हुई थी और चादर तक नहीं दी गई।
घर से मंगवाकर बिछाई। डॉक्टरों और अस्पताल प्रबंधन को नवजात और मरीजों की परवाह ही नहीं है, हमारे कूलर-एसी की तारें निकाल दी, एक-दो पंखे चलते हैं जबकि डॉक्टरों के एयरकंडीशन धड़ल्ले से चल रहे हैं। वार्ड में मरीज के परिजन साफ-सफाई रखते हैं और खुद कूड़ा बाहर फेंककर आते हैं। रजनी ने कहा कि वार्डों में रंग रोगन देखे काफी साल हो गये, जब पहली बार इलाज करवाने आई थी तो दीवारें थोड़ी साफ-सुथरी थी, अब तो गुटखे के थूक से लाल हैं, मकड़ी के जाले लग गए हैं और दीवारों का रंग उतर चुका है।
मेल सर्जिकल वार्ड में भर्ती बलदेव सिंह ने कहा कि वार्ड में लाइटें लगाई जरूर गई हैं लेकिन रात में अंधेरा ही होता है, वह पिछले दो महीने से भर्ती है और बाथरूम जाते समय कई बार गिरकर चोटिल हो चुके हैं। वार्ड में लाइट की तारें लटकी हुई हैं जिसका खतरा बना हुआ है। अस्पताल प्रबंधन के अधिकारी निरीक्षण तो कर जाते हैं पर सुधार नहीं होता। दो हफ्ते से बीमार गढ़ा के दिलीप सिंह ब्लड टेस्ट करवाने आए थे।
जले हुए मरीजों के लिए बनाए गए बर्न वार्ड को सिक्योर बनाया जाता है ताकि मरीज ठीक हो सके। लेकिन सिविल अस्पताल के बर्न वार्ड में दो साल के बच्चे कमल को आम मरीजों के बीच लिटा दिया गया। कमल कुकर की भाप से जल गया था। आग में जले मरीज का बेड और वार्ड पूरी तरह से बंद होता है, पर यहां आम मरीज भी भर्ती कर दिए गए हैं। कमल की मां माधुरी वासी नकोदर चौक को सिविल अस्पताल में ऐसे ही इलाज की उम्मीद थी। उन्होंने कहा कि गर्मी की वजह से जलन के कारण बेटा रो रहा है और प्रबंधन एसी की तार निकालकर बैठा है।
मैं ये नहीं कहता कि सिविल अस्पताल में कमियां नहीं है पर हम सुधार कर रहे हैं। पहले चरण में खराब बेड बदले गए और नई चादरें मंगवाई गई। कुछ वार्ड हैं जहां अभी भी बेड शीट फटी हुई हैं, उन्हें बदल रहे हैं। वार्डों में रंग-रोगन करवाना सरकार का काम है, टेंडर बनाकर भेज देते हैं पर कोई रिस्पांस नहीं आता।
अस्पताल के लगभग सभी वार्डों में एसी, कूलर और पंखे लगे हैं लेकिन बारिश का मौसम शुरू हुआ तो एसी-कूलर बंद कर दिए। पंखे चल रहे हैं। जो पंखे गलत डायरेक्शन में लगे हैं उन्हें बदल रहे हैं, अस्पताल में मिल रही सुविधाओं में बदलाव लाएंगे, हर सुविधाय मरीज तक पहुंचाएंगे।
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